क्या है श्री गणेश की शक्ति का असली रहस्य? -1
मातृ शक्ति भी हैं, विघ्नहर्ता श्री गणेश। सनातन धर्म की शैव, वैष्णव तथा शाक्त विचारधाराओं के साथ ही बौद्ध तथा जैन धर्मों में भी श्री गणेश के स्त्री स्वरूप को उनके नामों के स्त्रीलिंग रूपों में गणेशी, विनायकी, विघ्नेश्वरी और गण मातृका (देवी) के रूप में स्वीकार किया गया है। गणपति के इस स्त्री स्वरुप का इतिहास क्या है? इस स्वरुप की महिमा क्या और क्यों है? चीन के अधीन तिब्बत में बौद्ध गणेशी की पूजा किस उद्देश्य से करते हैं? इसकी आराधना किस प्रकार से करने पर, क्या फल मिलता है? इस सचित्र आलेख में जानिये !
बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सनातन धर्मं में केवल प्रथम पूज्य विघ्नहर्ता श्री गणेश को ही शैव, वैष्णव तथा शाक्त सम्प्रदायों के साथ ही बौद्ध तथा जैन धर्मों में भी मातृका शक्ति के रूप में पूजा जाता है। जिस तरह विष्णु की शक्ति वैष्णवी, शिव की शिवा, ब्रह्मा की ब्रह्माणी को उनकी शक्ति के रूप में जाना जाता है। ठीक वैसे ही गणेश की शक्ति को नारी-रूप में माना और पूजा जाता है। इस लेखमाला के प्रथम भाग में हम चर्चा करेंगे श्री गणेश के स्त्री स्वरूपों की मूर्तियों की खोज और उनकी रेडियो कार्बन डेटिंग पद्धति से प्राचीनता की जांच की।
शक्ति स्वरूपा स्त्री-गणेश : आज भी भारत में स्त्री रूपी श्रीगणेश को गणेशानी, विघ्नेश्वरी माँ, गणमातृका देवी, विनायकी, गणेशी, गजानना, हस्तिनी, वैनायिकी, गणपति हृदया, श्री अयंगिनी, महोदरा, गजवस्त्रा, लंबोदरा, महाकाया और गजाननी माता के रूप में पूजा जाता है।
यह पूजा अर्चना होने के प्रमाण मथुरा और वाराणसी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, हिमाचल, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में पाई गयी मूर्तियों की से भी मिले हैं। यहाँ तक कि तिब्बत में आज भी बौद्ध अनुयायी भी गणेशनी की पूजा करते हैं?
पहले अधिकाँश विद्वान् मानते थे कि श्री गणेश के शक्ति स्वरूपों की पूजा की परंपरा सोलहवीं शताब्दी में प्रचलित थी, लेकिन जब रेडियो कार्बन डेटिंग से श्री गणेश की स्त्री स्वरुप मूर्तियों की जांच की गयी तो पता चला कि अनेक मूर्तियाँ पहली शताब्दी से पहले की थीं और कुछ दसवीं शताब्दी से पहले की।
भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधीन संचालित मथुरा और कोलकाता संग्रहालयों में दूसरी शताब्दी से पहले की स्त्री-गणेश की मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। बहुत सी मूर्तियाँ विभिन्न राज्यों के मंदिरों में इसलिए पूर्ववत स्थापित छोड़ दी गयी हैं क्योंकि स्थानीय लोग आज भी उनकी पूजा करते हैं।
श्री गणेश की एक जैसी दिखनेवाली, विनायकी रूप की मूर्तियां तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर, जबलपुर के निकट चौसठ योगिनी मंदिर, मंदसौर के हिंगलाजगढ़ के अलावा मथुरा और वाराणसी जैसे प्राचीन शहरों में भी मिलती है। दसवीं शताब्दी में बने भीलवाड़ा (राजस्थान) के मंदाकिनी या मीनाक्षी मंदिर की बाहरी दीवारों पर में नारी-गणेश की दो-दो प्रतिमाएं हैं। मुख्य मंदिर के बाहरी स्तंभ पर स्त्रीरूपी श्री गणेश की एक छोटी प्रतिमा है, जबकि पीछे मंदिर के दक्षिण भाग में नारी गणेश की ललितासन प्रतिमा स्थित है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में आज भी ग्रामीण हर बुधवार को फसलों की रक्षा और महामारी से बचाव के लिए विनायिकी की पूजा परंपरागत रूप से करते हैं। इस इलाके में कोरोना काल में भी किसी को कोई रोग नहीं हुआ। हालांकि प्रसासन ने बुधवार को होनेवाले विनयकी पूजा का कार्यक्रम रुकवा दिया था।
श्रीगणेश की स्त्री स्वरूपा मूर्तियाँ किसी योद्धा और रक्षक देवी की जैसी दिखती हैं। सभी के हाथों में एक से अधिक अस्त्र-शस्त्र नज़र आते हैं।
श्री गणेश की शक्ति या कोई मातृका?: श्री गणेश के स्त्री अवतार का देवी सहस्त्रनाम में गणेशानी, विनायकी, लंबोदरी और गणेश्वरी के रूप में उल्लेख मिलता है। मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण और स्कंद पुराण में भी विनायिकी का उल्लेख मिलता है। जैन ग्रंथों में विनायिकी को छत्तीसवीं मातृका कहा गया है।
उल्लेखनीय है कि ईसा से करीब 350 साल पहले लिखे गए अग्नि पुराण और लिंग पुराण में श्री गणेश की शक्ति के रूप में विनायकी का सबसे पहले उल्लेख किया गया था। देवी भागवत में विनयकी को नवीं मातृका कहा गया है। मत्स्य पुराण में श्री गणेश की इस शक्ति को शिव की स्त्री-शक्ति अर्थात शिवा (माता पार्वती से उत्पन्न होने के कारण) की शक्ति भी कहा गया है।
महापुराणों और उप पुराणों में श्री गणेश के रिद्धि, सिद्धि और बुद्धि से हुए विवाहों को लेकर कुछ रोचक कहानियां दी गयीं हैं। श्री गणेश को ब्रह्मचारी के रूप में अपनी माता पार्वती के अनन्य भक्त होने के कारण शक्ति का ही अवतार बताया गया है। स्कन्द पुराण में गजाननी का उल्लेख अवश्य भ्रम पैदा करता है कि पुराणकार महालक्ष्मी की बात कर रहे हैं या श्री गणेश की धाय माता मालिनी की, जो पार्वती जी के साथ रहा करती थीं?
कुछ विद्वान् यह भी मानते हैं कि विनयकी या गजाननी के रूप में पूजे जानेवाली गणेश जी की शक्ति, उनके पिता महादेव शिव की शक्ति शिवा (पार्वती) की ही तरह उनकी पत्नी रिद्धि या सिद्धि में से कोई हैं। यद्यपि वे इसका प्रमाण नहीं देते।
वायु पुराण, स्कन्द पुराण और हरिवंश पुराण में भी हाथी के सर वाली मातृकाओं का उल्लेख तो मिलता है परन्तु उनके श्री गणेश की शक्ति होने का कोई संकेत नहीं है। चौंसठ योगिनियों और मातृकाओं में से किसी की पूजा विनायकी की तरह से नहीं की जाती। जबकि विनायकी को मूषक वाहन पर खड़े या बैठे ही दिखाया जाता है और उनको भी मोदक का ही भोग लगाते हैं। जाहिर है विनायकी, विघ्नेश्वरी और गणेशनी नाम से प्रसिद्ध शक्ति ही स्त्री गणेश की शक्ति है।
भाग २-
अगले लेख में हम अनेक दुर्लभ मूर्तियों के विवरण और उनकी कार्बन डेटिंग के आधार पर सिद्ध करेंगे कि विनायकी किसकी असली शक्ति हैं? उनकी शक्तियाँ क्या हैं? वे क्या क्या करती हैं? उनकी पूजा कितनी आसान या कठिन है? उनसे क्या क्या पाया जा सकता है?
द्वितीय भाग : क्या है श्री गणेश की शक्ति का असली रहस्य?-2