क्या हैं माँ दुर्गा के नौ देवी रूप, हिंदू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व क्या है?

प्राचीन भारतीय परम्परा में मां दुर्गा को शक्ति की देवी के रूप में मानते हुए इनके विभिन्न स्वरूपों के पूजन, अर्चन और स्तवन का विधान बताया गया है। सनातन धर्म में दो बार मां दुर्गा के नौ विभिन्न देवी स्वरूपों की आराधना के लिये नवरात्र का आयोजन किया जाता है। पहले नवसंवत्सर के प्रारंभ में जब चैत्र प्रतिपदा का आरंभ होता है तब चैत्र नवरात्र का आयोजन होता है और पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के नवस्वरूपों के पूजन के बाद रामनवमी के रूप में चैत्र नवरात्र संपन्न हो जाते हैं। इसी तरह वर्ष में दूसरी बार आश्विन के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्र का आयोजन किया जाता है। इन नवरात्र में भी मां दुर्गा के नवस्वरूपों का विशेष पूजन और अर्चन किया जाता है और नौ दिनों के बाद विजयदशमी से एक दिन पूर्व शारदीय नवरात्र संपन्न हो जाते हैं। दोनों ही नवरात्र में मां दुर्गा के शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री रूपों का पूजन और अर्चन किया जाता है।

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क्या हैं माँ दुर्गा के नौ देवी रूप, हिंदू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व क्या है?
Nav Durga

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।


नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। माता दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है। माता के प्रथम रूप को शैलपुत्री, दूसरे को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्रघण्टा, चौथे को कूष्माण्डा, पांचवें को स्कन्दमाता, छठे को कात्यायनी, सातवें को कालरात्रि, आठवें को महागौरी तथा नौवें रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।

शैलपुत्री

वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।

मां दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री का है। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया। यह वृषभ पर आरूढ़ दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में पुष्प कमल धारण किए हुए हैं। यह नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि पूजन में पहले दिन इन्हीं का पूजन होता है। प्रथम दिन की पूजा में योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना शुरू होती है।

ब्रह्मचारिणी

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
 देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्मा शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य है। इसके बाएं हाथ में कमण्डल और दाएं हाथ में जप की माला रहती है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

चंद्रघण्टा

पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र है। इसी कारण इस देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनका वाहन सिंह है। हमें चाहिए कि हम मन, वचन, कर्म एवं शरीर से शुद्ध होकर विधि−विधान के अनुसार, मां चंद्रघ.टा की शरण लेकर उनकी उपासना व आराधना में तत्पर हों। इनकी उपासना से हम समस्त सांसारिक कष्टों से छूटकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।

कूष्माण्डा

सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।

माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। नवरात्रों में चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। अतः पवित्र मन से पूजा−उपासना के कार्य में लगना चाहिए। मां की उपासना मनुष्य को स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाती है। अतः अपनी लौकिक, परलौकिक उन्नति चाहने वालों को कूष्माण्डा की उपासना में हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

स्कन्दमाता

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द 'कुमार कार्तिकेय' के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी उपासना नवरात्रि पूजा के पांचवें दिन की जाती है इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इनका वर्ण शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है।

कात्यायनी

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर कर देता है। भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। इनका साधक इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से युक्त होता है।

कालरात्रि

एक वेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयड्करी।।

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। दुर्गा पूजा के सप्तम दिन मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश और ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

महागौरी

श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। इनकी शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।

सिद्धिदात्री

सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। जैसा कि नाम से प्रकट है ये सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री अंतिम हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। देवी के लिए बनाए नैवेद्य की थाली में भोग का सामान रखकर प्रार्थना करनी चाहिए।

Anoop Mishra Entrepreneur | Social Media & PR Strategist | IT Visionary Explore my profile at : www.anoopmishra.com