कौन हैं प्रभु गणेश जी की तरह दिखने वाली माता विनायकी और क्या है उनकी शक्ति का असली रहस्य, कैसे पाएँ वांछित आशीर्वाद?
अब तक आपने जाना कि विभिन्न राज्यों में स्त्री रूप में श्री गणेश मूर्तियाँ मिलीं तो माना गया कि उनकी पूजा आराधना सोलहवीं शताब्दी के आसपास पनपी और खत्म भी हुई होगी। लेकिन कार्बन डेटिंग की खोज के बाद, इन मूर्तियों की जांच से सिद्ध हुआ कि कई मूर्तियाँ तो ईसा से भी पहले बनी थीं। अब विज्ञान और तर्क शास्त्र के आधार पर यह जानिये कि श्री गणेश के स्त्री स्वरुप के उत्पन्न होने से लेकर, उनकी पूजा समाप्त होने के क्या कारण रहे होंगे? यह भी जानिये कि क्या चमत्कारी विनायकी रूपी श्री गणेश की पूजा अब भी की जा सकती है? कैसे?
अब तक: पिछली कड़ी में मैंने स्त्री गणेश के जन्म की कथा का उल्लेख करते हुए बताया था सभी ग्रंथों में लगभग सारी ही कथाओं में पार्वती जी के पसीने से उत्पन्न अंधकासुर के विनाश के लिए श्री गणेश के इस विनायकी रूप के उत्पन्न होने का उल्लेख है। ईसा से करीब 350 साल पहले लिखे गए अग्नि पुराण और लिंग पुराण में श्री गणेश की शक्ति के रूप में विनायकी का सबसे पहले उल्लेख किया गया था। देवी भागवत में विनायकी को नवीं मातृका तथा जैन ग्रंथों में छत्तीसवीं मातृका कहा गया है। मत्स्य पुराण में स्त्री-रूपी श्री गणेश को शिव की मूल शक्ति अर्थात शिवा (माता पार्वती से उत्पन्न होने के कारण) की मातृका भी कहा गया है। इस कथा को आप पिछली कड़ी में देखिये।
भले ही देवी भागवत, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण, विष्णु धर्मोत्तर पुराण, स्कंद पुराण, लिंग पुराण, शिव पुराण में विनायकी या गणेशानी स्वरूप की उत्पत्ति प्रागैतिहासिक उत्तर भारत में कैलाश पर्वत पर हुई बताई गयी है, लेकिन श्री गणेश के इस स्वरुप की व्याख्याओं की एकरूपता उपरोक्त सभी ग्रंथों के दक्षिण भारतीय संस्करणों में मिलती है। वायु पुराण, स्कन्द पुराण और हरिवंश पुराण में भी हाथी के सर वाली मातृकाओं का उल्लेख तो मिलता है परन्तु उनके श्री गणेश की शक्ति होने का कोई संकेत उत्तर भारतीय संस्करणों में नहीं है।
विनायकी आराधना कठिन : दक्षिण भारतीय व्याख्याओं के अनुसार श्री गणेश एक माता-पिता भक्त अत्यंत सौम्य और सहज प्रथम पूज्य देव हैं। उनके जिन स्वरूपों की पूरे संसार में जहाँ कहीं भी उनकी पत्नियों रिद्धि-सिद्धि पूजा होती है, वह अपने सहज प्रसन्न हो कर वर दे देनेवाले पिता भगवान् भोलेनाथ महादेव की भांति ही हैं। लेकिन जिन माता पार्वती के शरीर के अंश से उनकी उत्पत्ति हुई है, उनकी पूजा प्रचंड शक्तिशाली नौ देवियों के रूप में भी होती है। उनके सभी नौ स्वरूपों का स्वभाव और भक्तों को मिलनेवाले परिणाम भिन्न हैं। वैसे चौंसठ योगिनियों और मातृकाओं में से किसी की पूजा विनायकी जैसी कठोरता से नहीं की जाती। विनायकी कहीं मूषक, कहीं सिंह और कहीं चीते पर सवार दिखती हैं। उनकी कुछ मूर्तियों में उनके पैर भी शेर जैसे हैं। जहाँ भी उनकी मूर्तियाँ हैं उनकी पूजा से पहले माता पार्वती की पूजा अनिवार्य है। वैसे श्री गणेश की तरह ही उनको भी मोदक का ही भोग लगाया जाता है। ब्रह्मचारी श्री गणेश की स्त्री शक्ति विनायकी भी अलग-अलग प्रकार से पूजा करने पर परिणाम देती हैं। जैसे विनयकी स्त्री रूप में ब्रह्मचारी श्री गणेश हैं, सो उनको सिन्दूर नहीं लगाया जाता। वह माता भक्त हैं इसलिए उनकी पूजा से पहले सिन्दूर-सुहाग वस्त्रों सहित पार्वती पूजा ज़रूरी है। अब इस क्रम में ज़रा सी चूक हुई तो विनयकी रुष्ट हो कर मामला बिगाड़ने में विलम्ब नहीं करेंगी। जबकि ऐसा कोई जोखिम श्री गणेश के रिद्धि-सिद्धि सहित रूप में नहीं है। यही कारण उनकी पूजा कम होने का रहा होगा। इसका एक अत्यंत रोचक उदाहरण उनके पिता भगवान भोलेनाथ की पूजा पर लगे तांत्रिक प्रतिबन्ध की कहानी है, जिससे विनायकी की पूजा के कम होने को समझा जा सकता है।
जागेश्वरनाथ की कहानी : उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले में एक सिद्ध तीर्थ है जागेश्वरनाथ धाम। यहाँ प्राचीन शिलाओं से केदारनाथ शैली में बने लगभग दौ सौ प्राचीन शिव मंदिर हैं। इन मंदिरों का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। यहाँ पहली बार भगवान् श्री राम के पुत्रों लव और कुश ने शिव लिंग स्थापना की थी। इस स्थान का नाम जागेश्वर इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवान शंकर किसी भी भक्त को उसी प्रकार तुरंत वरदान दे देते थे, जैसे उन्होंने अपने शिष्य वृक को दिया था। जिसे बाद में भस्मासुर कहा गया। उसे मारने के लिए स्वयं विष्णु को मोहिनी नामक स्त्री अवतार लेना पड़ा था। इसी तरह जब जागेश्वर धाम में आनेवाले लोगों ने यहाँ तुरंत मिलनेवाली शिव-कृपा का दुरुपयोग करना शुरू किया, आठवीं शताब्दी में स्वयं आदि शंकराचार्य ने यहाँ आकर महा मृत्युंजय मंदिर में शिव लिंग को कीलित किया। उसके बाद यहाँ लोगों द्वारा खतरनाक किस्म की पूजाएँ करना बंद कर दिया। जिन लोगों को लगता है क्या ईश्वर इतनी जल्दी प्राथनाएं सुनते हैं? जवाब है हाँ। जिस तरह आप मोबाइल फोन से टीवी या एयर कंडिशनर को चालू नहीं कर सकते, उसी तरह ईश्वर तक बात पहुंचाने के लिए, सही भाव, सही माध्यम का उपयोग आवश्यक है।
ईश-प्रार्थना का टाइम ट्रेवेल: क्या आपने इस बारे में कभी सोचा है कि हमारी आकाश गंगा हमारे सूर्य, पृथ्वी के अलावा इस सृष्टि में कितने करोड़ गृह, नक्षत्र और आकाश गंगाएं हैं? ज़रा सोचिये और गूगल कीजिये। क्योंकि गूगल किये बिना आप यह जानेंगे नहीं और हम बताएँगे तो मानेंगे नहीं। इतना ज़रूर बता दें कि हमारी पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट हेलिक्स नेबुला हमसे लगभग 700 प्रकाश वर्ष दूर है। इसे ऐसे समझिये कि एक सेकण्ड में प्रकाश की किरण 1,86,000 किलोमीटर का सफ़र तय करती है, तो 700 करीब साल में कितनी दूर जायेगी? उतनी दूर तो हमारी सबसे निकट आकाशगंगा है। हर आकाशगंगा में हमारे सूर्य से छोटे और बड़े लाखों सूर्य हैं। आकाशगंगाओं की संख्या ही वैज्ञानिक सही तरह से जान नहीं पाए। इस बारे में जानने के लिए आप जब चाहें अन्तरिक्ष की खोज की सबसे विश्वसनीय संस्था नासा की इस साइट पर सीधे चले जाइए : https://spaceplace.nasa.gov/nebula/en आपका इस साइट पर जाना इसलिए ज़रूरी है कि आप समझ सकें कि अपार अन्तरिक्ष दरअसल है कितना बड़ा?
अब यह सोचिये कि ईश्वर जहाँ भी रहते होंगे, वह यदि कोई भी लोक है तो निश्चित ही अन्तरिक्ष नामक बस्ती से अलग ही कोई संसार होगा। श्रीमदभागवत, विष्णु पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में अन्तरिक्ष में अनेक लोकों का उल्लेख है और उसकी अखंड खिल्ली भी उड़ाई जाती है। हमारा विज्ञान केवल इतना उन्नत हुआ है कि यह बता पा रहा है कि अन्तरिक्ष में हजारों करोड़ सूर्य जैसे और उससे भी बेहद विशाल गृह हैं। तो फिलहालसिर्फ इतना मान लेते हैं कि कोई ऐसा संसार भी होगा जिसमें इस दुनिया को बनानेवाले का निवास होगा। सारी सृष्टि में जो शक्ति शून्य से ही सब कुछ बना सकती है, जाहिर है वह सब किसी ना किसी रूप में दैवीय ज़रूर है। हम आप भी। उसी से आये और उसी के पास लौट जायेंगे? इतना तो मान ही लेंगे?
अब यह सोचिये कि जब हमें पृथ्वी की सबसे निकट आकाशगंगा तक प्रकाश की गति से जाने पर भी 700 साल लगेंगे, तो अन्तरिक्ष के पार ईश्वर के लोक तक जाने में कितने हजार साल लगेंगे? संसार में ऐसे अनगिनत लोग हैं जो मरने के बाद कुछ ही घंटों में फिर से ज़िंदा हो गए और उन्होंने दूसरे लोक की अनोखी बातें बताईं। कल्पना कीजिये उनकी आत्मा ने किस रफ़्तार से आने जाने की यात्रा की होगी? सच्ची अंतरात्मा से की गयी हमारी प्रार्थनाएं भी इसी रफ़्तार से हम ईश्वर को जिस रूप में भी मानते हैं, उस तक पहुँच जाती हैं। इसे तर्कशास्त्र के समुच्चय सिद्धांत में प्रार्थना की कालातीत यात्रा कहा गया है।
ॐ में है चमत्कारी शक्ति: इंटरनेट के इस युग में लोगों को ज्ञान-विज्ञान-तर्क हर मामले में गूगल देवता की स्वीकृति चाहिए। लेकिन मेरा कार्य आसान हो जाता है। आप गूगल पर गृह नक्षत्रों की आवाजों की रिकार्डिंग (साउंड्स ऑफ़ प्लैनेट्स), ढूंढ कर सुनेंगे तो पायेंगे कि सभी की आवाज़ में अलग-अलग तरह से निरंतर बोला गया ॐ शब्द ही है। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार इस सृष्टि की उपत्ति भी सृष्टि की आरंभिक आवाज़ से ही हुई। सभी धर्मों की पुस्तकों में भी यही उल्लेख अलग अलग तरह से मिलता है। प्राचीन भारत में मन्त्रों के आरम्भ में ॐ लगाने का भी यही रहस्य है। वेदों में तो ॐ को ईश्वर का नाम माना गया है। ध्यान और योग के समय ॐ शब्द का उच्चारण अलग-अलग उद्देश्य से किया जाता है। यही ध्वनि ऊर्जा मानव मन और शरीर पर सबसे अधिक प्रभाव डालती है और किसी साधक को परमात्मा से जोड़ती है। इसीलिये आदिकाल से आजतक भगवान शिवशंकर का पंचाक्षरी मन्त्र ‘ॐ नमः शिवायः’ सबसे शक्तिशाली माना गया है। इस मन्त्र का उपयोग पार्वती, श्री गणेश और विनायकी की पूजा में भी सबसे पहले होता है।
विनायकी से कैसे लाभ लें?: तमिलनाडु राज्य के कन्याकुमारी शहर में थानुमलायन सुचिन्द्रम मंदिर में आज भी त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु व महेश) के साथ ही विनायकी की अपार शक्ति के प्रमाण मिलते हैं। इस मंदिर में श्री गणेश के स्त्री रूप विनायकी को श्रीगणेश की ही तरह विनय, बुद्धि और सिद्धि की देवी माना जाता है। मंदिर में पूजा के लिए लगातार दो प्रकार के भक्त जाते हैं, एक तो वे जो कुछ मांगने जाते हैं, दूसरे वो जिनकी मन्नतें पूरी हो जाती हैं, तो आभार व्यक्त करने वहां जाते हैं। अल्मोड़ा के जागेश्वरधाम की ही तरह यहाँ इस मंदिर में भी कोई भक्त बिना पुरोहित के पूजा नहीं कर सकता। इसी प्रकार महाराष्ट्र में पुणे के पास भुलेश्वर महादेव मंदिर में भी सिद्ध विनायकी की पूजा की जाती है। बालिकलपुरा (चेरियानाड) के श्रीबालसुब्रमण्यम स्वामी मंदिर में इसी प्रकार तीसरी शताब्दी में बनी दुर्लभ लकड़ी की विनायकी की मूर्ति की पूजा की जाती है। इन सभी मंदिरों को आज भी मान्यताएं पूरी मरनेवाले तीर्थ माना जाता है । इन सभी मंदिरों में भक्तों को पूजा करने से पहले अपनी मनोकामना का ब्योरा बताना पड़ता है। इससे भी यह सिद्ध होता है कि विनायकी के रूप में श्री गणेश मनोकामनाएं ही पूरी करते हैं और शायद कुछ अलग ही तेज़ी से। इस कार्य में सावधानियां ना रखीं तो भक्त को उसी तरह से दुर्भाग्य दबोच लेता है जैसे भगवान् होते हुए भी शंकर जी को उनके बनाये दैत्य भस्मासुर ने दौड़ा लिया था। ठीक वैसे ही जैसे हनुमान जी को शनि से बचने के लिए श्री गणेश की शरण लेनी पडी थी।
विनायकी आराधना में सावधानियां: आपको जानकर हैरत होगी कि श्री गणेश विनायकी, गणेशानी या गजाननी के रूप में किसी मां बड़ी बहन अथवा बहुत साथ निभाने वाली सखी की तरह इच्छाएं पूरी करते हैं। मदद करते हैं। लेकिन इस रूप में उनकी पूजा की कुछ कठिन शर्तें भी है। ठीक है वैसे ही जैसे कि आपको गीले हाथों से बिजली के तार अथवा गैस के चूल्हे पर चढ़े खोलते दूध के बर्तन को बिना किसी सावधानी के नहीं छूना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे कि सैनिटाइजर से हाथ धोने के बाद आप अपने हाथों को यदि आग के पास ले जाएंगे तो उनमें अदृश्य अग्नि लग जाएगी, जो आंखों को देखेगी ही नहीं। इन सावधानियों को जरूर जान लेना चाहिए वरना जान का जोखिम है। विनायकी देवी ऊर्जा का वह स्वरूप है जो बहुत उम्र और तीव्र है। साधारण भक्तों को समझाने के लिए प्राचीन ऋषि-मुनियों ने उन्हें ब्रह्मचारी गणेश की ऊर्जा बताया था। श्री गणेश के जिस स्वरुप कि हम लोग सामान्यतः पूजा करते हैं तो वह उनका विवाहित अथवा सौम्य स्वरूप है और उसमें रिद्धि सिद्धि उनकी पत्नियों के रूप में साथ रहती हैं। तात्पर्य यह कि जिसे खुशहाली और कोई सिद्धि चाहिए वह इस सौम्य स्वरुप की उपासना करेI जिसे शत्रुओं, मुकदमेबाजी, अकारण खराब समय, घाटे और नुक्सान से बचाव चाहिए उसे विनायकी के रूप में विघ्न विनाशक के उग्र स्वरुप की पूजा किसी पुरोहित की देख रेख में करनी चाहिए। विनायक सहज और सरल हैं। विनायकी चपल, त्वरित और तीक्ष्ण हैं। विनायक अपनी मूल शक्ति मां पार्वती की तरह 10 प्रकार की प्रवृतियां रखते हैं। विनायकी पूजा में इसी तरह के जोखिमों के कारण 16वीं शताब्दी के बाद से विनायकी के रूप में श्री गणेश की पूजा होनी बंद हो गई थी।
यह आलेख काफी लंबा हो गया । अगर आपक लोगों की प्रतिक्रियाएं मिलीं तो विनायकी की अलग से कथा, मन्त्रों और चालीसा भी यहाँ प्रस्तुत करूंगा। चलते-चलते क्या आपको मालूम है कि विनायकी को 42 मोदकों का भोग लगता है? इस बारे में फिर कभी बात करेंगे।