भीम-युधिष्ठिर और एक ब्राह्मण की कथा जो बताती है आज का काम कल पर क्यों नहीं टालना चाहिए

महाराज युधिष्ठिर धर्मपूर्वक राज्य चला रहे थे. प्रजा सुखी थी. चारों ओर हर्ष था. लेकिन एक दिन महाराज से एक गलती हो गई. इस गलती के बाद उनके छोटे भाई भीम ने उन्हें कैसे सबक सिखाया?

 466
भीम-युधिष्ठिर और एक ब्राह्मण की कथा जो बताती है आज का काम कल पर क्यों नहीं टालना चाहिए

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था. महाराज युधिष्ठिर राजा बन चुके थे और चक्रवर्ती सम्राट भी. उनके चारों छोटे भाई प्रजा की भलाई के लिए हमेशा लगे रहते और इस तरह पांचों पांडव मिलजुल राजकाज चला रहे थे. जो कोई दीन-दुखी फरियाद लेकर आता, उसकी हर प्रकार से सहायता की जाती.दरबार लगा हुआ था हमेशा की तरह राजा युधिष्ठिर राज कार्य से जल्दी निवृत होने हेतु जनता के मध्य उनकी समस्याओं को जल्दी जल्दी सुन उनका न्यायोचित आदेश पारित कर उठने ही वाले थे की वहाँ एक याचक अपनी समस्या ले आ पहुंचा।

एक ब्राह्मण याचक समस्या लेकर पहुंचा
एक दिन युद्धिष्ठिर् राजभवन में बैठे एक मंत्री से बातचीत कर रहे थे. किसी समस्या पर गहन विचार चल रहा था. तभी एक ब्राह्मण वहां पहुंचा. कुछ दुष्टों ने उस ब्राह्मण की गाय उससे छीन ली थी. वह ब्राह्मण महाराज युधिष्ठिर के पास अपनी शिकायत लेकर आया था.

मंत्री के साथ बातचीत में व्यस्त युधिष्ठिर उस ब्राह्मण की बात नहीं सुन पाए. उन्होंने ब्राह्मण से प्रतीक्षा के लिए कहा. 


युधिष्ठिर ने ब्राह्मण देवता से कल आने को कहा

मंत्री से बात के बाद वह उठे ही थे कि किसी दूर देश का दूत आ खड़ा हुआ, राजा उससे बात करने में उलझ गए. इसके बाद नगर के प्रतिनिधिमंडल ने उन्हें घेर लिया और फिर वह सेनापति के साथ सेनाओं की व्यवस्था पर बात करने लगे. सुबह से दोपहर हो गई और महाराज युधिष्ठिर जब बाहर आए तो ब्राह्मण को प्रतीक्षा करते पाया.

काफी थके होने के कारण महाराज युधिष्ठिर ने उस ब्राह्मण देवता से कहा, “अब तो मैं काफी थक गया हूँ. आप कल सुबह आइएगा. आपकी हर संभव सहायता की जाएगी.” इतना कहकर महाराज अपने विश्राम करने वाले भवन की ओर बढ़ गए.

याचक हताश हो चलने को हुआ तभी भीम ने ब्राह्मण से उसकी परेशानी का कारण पूछा. ब्राह्मण ने भीम को सारी बात बता दी. साथ ही वह भी बता दिया की महाराज ने उसे अगले दिन आने के लिए कहा है. 

ब्राह्मण की बात सुकर भीम बहुत दुखी हुए. उन्हें महाराज युधिष्ठिर के व्यवहार से भी बहुत निराशा हुई. उसने मन ही मन कुछ सोचा और फिर द्वारपाल को जाकर आज्ञा दी, “सैनिकों से कहो की विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाएं,” आज्ञा का पालन हुआ. सभी द्वारों पर तैनात सैनिकों ने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजाने शुरू कर दिए.

महाराज युधिष्ठिर ने भी नगाड़ों की आवाज़ सुनी. उन्हें बड़ी हैरानी हुई. नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं, यह जानने के लिए वह अपने विश्राम कक्ष से बाहर आए.

युधिष्ठिर ने काल पर विजय पाई?
बाहर निकलते ही सामने उन्हें भीम मिल गए. उन्होंने भीम से पूछा, “हमारी सेना ने किस पर विजय पाई है. विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े क्यों बजाये जा रहे हैं? ” भीम ने नम्रता से उत्तर दिया, “महाराज, हमारी सेनाओं ने तो किसी शत्रु पर विजय प्राप्त नहीं की.” “तो फिर ये नगाड़े क्यों बज रहें हैं?. युधिष्ठिर ने पूछा. भीम ने कहा कि “क्योंकि पता चला है की महाराज युधिष्ठिर ने काल पर विजय प्राप्त कर ली है.” 

भीम की बात सुनकर महाराज और हैरान हुए, वह समझ नहीं पाए कि उनका भाई कहना क्या चाहता है. उन्होंने फिर पूछा, “मैंने काल पर विजय प्राप्त कर ली है. आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?.

भीम ने समझाई अपनी बात
भीम ने कहा, “महाराज, अभी कुछ देर पहले आपने एक ब्राहम्ण से कहा था की वह आपको कल मिले. इससे ज्ञात होता है कि आपको पता है की आज आपकी मृत्यु नहीं हो सकती, आज काल आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यह सुनने के बाद मैंने सोचा की अवश्य अपने काल पर विजय प्राप्त कर ली होगी, नहीं तो आप उस ब्राह्मण को कल मिलने के लिए न कहते. यह सोच कर मैंने विजय के अवसर पर बजाये जाने वाले नगाड़े बजने की आज्ञा दी थी.”

युधिष्ठिर ने को समझ आई अपनी भूल
भीम की बात सुनकर महाराज युधिष्ठिर की आँखे खुल गई. उन्हें अपनी भूल का पता लग चुका था. तभी उन्हें पीछे खड़ा हुआ ब्राह्मण दिखाई दे गया. उन्होंने उसकी बात सुनकर एकदम उसकी सहायता का आवश्यक प्रबंध करवा दिया.

किसी कार्य को कल पर टालना बुरा
हमारे भी जीवन में ऐसा अक्सर होता है कि हम सामने पड़े जरूरी कार्य को कल पर टाल देते हैं. आलस में यह कह देते हैं कि इसे कल कर लेंगे. लेकिन, वास्तव में हम यह नहीं समझते कि अगले ही पल हमारे साथ क्या घटना-दुर्घटना घट सकती है. हो सकता है कि कल का मौका ही न मिले. 

कई बार भविष्य संबंधी जरूरी फैसले भी हम कल पर टालते हैं, जबकि उन्हें प्राथमिकता समझकर आज ही कर डालना चाहिए. भीम और युधिष्ठिर की कहानी यह सिखाती है. 


viveksri Advocate by profession, religiously inclined towards sanatan dharm.and proud to be a Hindu