चैत्र नवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है? जाने इसके पीछे का असली कारण इस लेख के माध्यम से ।
चैत्र नवरात्रि का पर्व क्यों मनाया जाता है? चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष के नवरात्र का व्रत और उत्सव करने का क्या कारण है? इस व्रत का क्या फल मिलता है, इसे किस प्रकार किया जाना चाहिए? सबसे पहले इस व्रत का पालन किसने किया था?जाने इसके पीछे का असली कारण इस लेख के माध्यम से।
नवरात्रि कथा
नवरात्रि पर्व हिंदू धर्म के लोगों के लिए बेहद खास माना जाता है। पंचांग अनुसार चैत्र नवरात्र हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू हो जाता है।
एक बार बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से पूछा कि चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष के नवरात्र का व्रत और उत्सव करने का क्या कारण है? इस व्रत का क्या फल मिलता है, इसे किस प्रकार किया जाना चाहिए? सबसे पहले इस व्रत का पालन किसने किया था?बृहस्पतिजी के सवाल का जवाब देते हुए ब्रह्माजी ने कहा कि- हे बृहस्पतेय! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा सवाल किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वो धन्य हो जाते हैं। नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है। इस व्रत को करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की कामना वाले को धन, विद्या की प्राप्ति की चाहत रखने वालों को विद्या और सुख की इच्छाएक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल रही थी और मां भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री पर क्रोध आ गया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरी शादी करुंगा। रखने वालों को सुख मिलता है।
हे बृहस्पतेय! जिसने सबसे पहले इस महाव्रत को किया था आज मैं तुम्हें उसकी कथा सुनाता हूं। ब्रह्माजी बोले- प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत् नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वो भगवती दुर्गा का बड़ा भक्त था। उसे सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। उसका पिता प्रतिदिन जब भी मां दुर्गा की पूजा कर होम किया करता था तो वह कन्या उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती थी।
पिता की बात सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरी शादी कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा होगा। मेरा तो अटल विश्वास है कि जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के अधीन है पर फल देना ईश्वर के अधीन है।
इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उसके पिता को और भी अधिर क्रोध आ गया। पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा अब अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन ही मन सोचने लगी कि अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। कन्या ये सोचते हुए कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने रात बड़े ही कष्ट से व्यतीत की।
उस कन्या की ऐसी दशा देख देवी भगवती प्रकट हुईं और उन्होंने सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो रदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं।
तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति ने चोरी की। चोरी करने पर तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेल में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया।
इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया जिस कारण अनजाने में ही सही लेकिन तुम्हारा नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो मांगो।
इस प्रकार मां दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली- मैं आपको प्रणाम करती हूं कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।
इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया।
वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी और माता से कहने लगी कि आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को हरने वाली, रोगी व्यक्ति को निरोग करने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो।
हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया था। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।
उस ब्राह्मणी की बात सुनकर देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। ब्राह्मणी ने कहा अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
मां दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है- नवरात्र में नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें। यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें। विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें।महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी विधि विधान पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन विधि विधान हवन करें। खांड, नारियल, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के फूलों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है।आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ, मंदिर अथवा घर में विधि के अनुसार करें।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पतेय! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अर्न्तध्यान हो गई। जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्तिपूवर्क करता है वह इस लोक में सुख प्राप्त कर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है।हे बृहस्पतेय! यह इस दुर्लभ व्रत का महात्म्य है जो मैंने तुम्हें बतलाया है। यह सुन बृहस्पति जी आनन्द से प्रफुल्लित हो ब्राह्माजी से कहने लगे कि हे ब्रह्मन! आपने मुझ पर अति कृपा की जो मुझे इस नवरात्र व्रत का महात्य सुनाया। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पतेय! यह देवी भगवती शक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है? बोलो देवी भगवती की जय।
मां दुर्गा का हुआ था अवतरण
कथाओं के अनुसार चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा का अवतरण हुआ था। दरअसल, ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त कर दैत्यराज महिषासुर ने से नरक का विस्तार स्वर्ग तक कर लिया था। दानवों के आक्रमण और दुराचार की वजह से देवी-देवता भी परेशान रहने लगे थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब महिषासुर की सेना ने देवताओं के राजा इंद्र की सेना पर विजय हासिल कर उनका सिंहासन ही छीन लिया था।
महिषासुर के इस दुस्साहस के कारण भगवान शंकर और भगवान विष्णु आति क्रोधित हुए और तब महिषासुर का अंत करने के लिए देवी शक्ति को जन्म देने का विचार बनाया गया है। देवताओं की सभा लगी और निर्णय लिया गया कि सभी देवी-देवताओं के तेज से एक ऐसी देवी को उत्पन्न किया जाएगा, जो महिषासुर ही नहीं बल्कि और भी कई असुरों का नाश करेगी।
ऐसे में भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख, भगवान विष्णु के तेज से देवी की भुजाएं, यमराज के तेज से देवी के बाल, चंद्रमा के तेज से देवी के स्तन और ब्रह्मा जी के तेज से देवी के चरण बनें। केवल अपना तेज ही नहीं देवी-देवताओं ने अपने शस्त्रों को भी देवी को अर्पित किया। जिसकी मदद से देवी ने महिषासुर का वध किया।
देवी और महिषासुर की लड़ाई नौ दिन चली। देवी के भव्य स्वरूप को देखकर ही महिषासुर भयभीत हो गया था। मगर उसने डर कर आपने अस्त्र शस्त्र नहीं त्यागे और आपनी लाखों सैनिकों की सेना लेकर देवी युद्ध करने पहुंच गया। देवी ने भी महिषासुर के भेजे सभी असुरों को परास्त कर दिया। इसके बाद बारी आई महिषासुर की और फिर माता ने उसे भी नहीं छोड़ा और उसका अंत कर दिया। यह नवरात्रि का अंतिम दिन था यानि अपने अवतरण के नौवें दिन देवी ने असुर का अंत किया और तब से चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाने लगा।