बुद्धिमान कबूतर और चालाक लोमड़ी की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक घना जंगल था जहाँ कई प्रकार के जानवर रहते थे। उसी जंगल में एक कबूतर और एक लोमड़ी भी रहते थे। कबूतर बहुत ही बुद्धिमान और शांति-प्रिय था, जबकि लोमड़ी चालाक और धूर्त थी।
बहुत समय पहले की बात है, एक घना जंगल था जहाँ कई प्रकार के जानवर रहते थे। उसी जंगल में एक कबूतर और एक लोमड़ी भी रहते थे। कबूतर बहुत ही बुद्धिमान और शांति-प्रिय था, जबकि लोमड़ी चालाक और धूर्त थी।
एक दिन कबूतर को खाना ढूँढ़ते हुए एक जाल में फंस गया। उसने बहुत कोशिश की लेकिन वह जाल से बाहर नहीं निकल सका। तभी वहाँ से लोमड़ी गुजरी। उसने कबूतर को जाल में फंसा देखा और उसके दिमाग में एक शैतानी योजना आ गई।
लोमड़ी ने कबूतर से कहा, "अरे, दोस्त! तुम इस जाल में कैसे फंस गए? तुम्हें तो बहुत सावधान रहना चाहिए था।"
कबूतर ने कहा, "हां, मैं गलत था। पर अब मैं क्या करूं? कृपया मेरी मदद करो।"
लोमड़ी ने हंसते हुए कहा, "तुम्हारी मदद तो मैं कर दूँगी, पर उसके बदले में मुझे कुछ चाहिए।"
कबूतर ने पूछा, "तुम्हें क्या चाहिए?"
लोमड़ी ने कहा, "मैं तुमसे कुछ नहीं चाहती, बस यह वादा करो कि तुम मेरे दोस्त बन जाओगे और मुझे हर रोज़ अपना भोजन देने आओगे।"
कबूतर ने सोचा कि लोमड़ी उसकी मदद कर रही है तो उसने उसकी शर्त मान ली। लोमड़ी ने तुरंत जाल को काटकर कबूतर को आजाद कर दिया।
अगले दिन से कबूतर रोज़ लोमड़ी के पास जाता और उसके लिए भोजन लाता। धीरे-धीरे कबूतर को समझ में आने लगा कि लोमड़ी उसका उपयोग कर रही है और यह दोस्ती उसके लिए हानिकारक हो सकती है।
कबूतर ने सोचा, "मुझे अब कोई तरकीब लगानी होगी ताकि मैं इस लोमड़ी के चंगुल से बाहर निकल सकूं।" उसने एक योजना बनाई।
अगले दिन जब कबूतर लोमड़ी के पास पहुंचा, तो उसने कहा, "मित्र, मुझे आज एक बहुत बड़ा भोजन मिला है, लेकिन उसे लाने के लिए मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है। क्या तुम मेरी मदद करोगी?"
लोमड़ी ने सोचा कि कबूतर सचमुच एक बड़ा शिकार पकड़ लाया होगा। उसने तुरंत कबूतर की बात मान ली और उसके साथ चल पड़ी। कबूतर लोमड़ी को एक गहरी खाई के किनारे ले गया और कहा, "वह रहा तुम्हारा भोजन। तुम इस खाई के अंदर जाओ और भोजन उठाओ।"
लोमड़ी ने खाई की गहराई पर ध्यान नहीं दिया और कबूतर की बात मानकर खाई में कूद गई। जैसे ही लोमड़ी खाई में गिरी, वह बाहर नहीं आ पाई।
कबूतर ने उड़ते हुए कहा, "चालाकी और धूर्तता हमेशा काम नहीं आती। अब तुम वहीं रहो और सोचो कि तुम्हारी चालाकी ने तुम्हें कहां पहुंचाया है।"
इस प्रकार कबूतर अपनी समझदारी से न केवल खुद को बचा पाया बल्कि लोमड़ी को भी उसकी सजा मिल गई।
कहानी से शिक्षा:
धूर्तता और चालाकी कभी भी दीर्घकालीन लाभ नहीं देती। बुद्धिमानी और सही सोच से ही समस्याओं का समाधान होता है।