Nag Panchami 2024: क्यों मनाई जाती है नागपंचमी? जानिए इसकी तिथि, मुहूर्त, और पूजा विधि
नाग पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे नाग देवता की पूजा के लिए बेहद शुभ माना जाता है। यह दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आता है, स दिन नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष दूर होता है और साथ ही परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही पैसों से जुड़ी समस्याओं का निवारण भी होता है।

नाग पंचमी सावन महीने का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जो प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कई जगह पर इसे भैया पंचमी भी कहते हैं। इस दिन स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं तो कई जगह इस दिन सापों को दूध पिलाने की परंपरा निभाई जाती है। कहते हैं इस दिन सापों को अर्पित किया गया कोई भी पूजन सीधे नाग देवताओं तक पहुंच जाता है। हिंदू धर्म में सापों को बेहद पूजनीय माना जाता है।
राजस्थान, ओडिशा, बिहार और बंगाल में यह नागपंचमी का पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। आज के दिन जगह-जगह नागों को दूध लावा चढ़ाया जाता है। आज के दिन सपेरे जगह-जगह नागों को टोकरी में लेकर घूमते हैं और घर-घर जाते हैं। लोग उन्हें श्रद्धा से दूध पिलाते हैं और लावा चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इतने खतरनाक जीव को नागपंचमी के दिन दूध क्यों पिलाया जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा और कई मान्यताएं हैं।
नाग पंचमी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे नाग देवता की पूजा के लिए बेहद शुभ माना जाता है। यह दिन श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आता है, जो साल 2024 में 9 अगस्त को है। इस दिन नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष दूर होता है और साथ ही परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही पैसों से जुड़ी समस्याओं का निवारण भी होता है।
चलिए अब आपको बताते हैं इस साल नाग पंचमी कब मनाई जाएगी और इसकी पौराणिक कहानी क्या है और नाग पंचमी की पूजा विधि क्या है और इससे क्या-क्या लाभ आपको प्राप्त हो सकते हैं।
नाग पंचमी 2024 तिथि व मुहूर्त
नाग पंचमी 9 अगस्त 2024, शुक्रवार को है।
नाग पंचमी पूजा मूहूर्त 05:47 AM से 08:27 AM तक रहेगा।
नाग पंचमी तिथि 9 अगस्त 2024 को 12:36 AM से 10 अगस्त को 03:14 AM तक रहेगी।
बता दें गुजरात में नाग पंचमी 24 अगस्त 2024, शनिवार को मनाई जाएगी।
नाग को दूध पिलाने के पीछे है यह वजह
पुराणों में वर्णित कथाओं में बताया गया है कि नागपंचमी के दिन सांप को दूध पिलाने से सर्पदंश का भय दूर होता है और आपको सर्प देवता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस संबंध में भविष्य पुराण की कथा में बताया गया है कि एक बार पांडवों के वंशज राजा जनमेजय ने नाग यज्ञ किया जिसमें नागों की अनेक जातियां भस्म हो गई। तक्षक नाग ने देवराज इंद्र के आसन को भी लपेट लिया जिससे देवराज इंद्र भी आसन समेत यज्ञ की अग्नि भस्म होने वाले थे कि यज्ञ को बीच में ही रोक देना पड़ा। इससे नागों की प्रजाति पूरी तरह से भस्म होने से बच गई। उसके बाद नागों के जले हुए जख्मों से सही करने के लिए उन पर दूध और लावा चढ़ाया गया तब जाकर उनके प्राण बच सके और उनके जख्म ठंडे हुए। तब ये यह मान्यता चली आ रही है कि नागपंचमी के दिन जो भी सांपों को दूध लावा देगा उन्हें सर्पदंश का भय नहीं रहेगा।
इसलिए पंचमी तिथि को होती है नाग देवता की पूजा
ब्रह्माजी ने पंचमी तिथि को वरदान दिया था और आस्तिक मुनि ने पंचमी तिथि को ही नागों की रक्षा की थी, इसलिए पंचमी तिथि नागों को बहुत प्रिय है। पंचमी के दिन नागों की पूजा कर यह प्रार्थना करनी चाहिए कि जो नाग पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग, सरोवर, कूप, तालाब आदि जगहों पर रहते हैं, वे सब हम पर प्रसन्न हों और सर्पदंश के भय से मुक्ति मिले इसलिए हम नाग देवताओं को बार बार नमस्कार करना चाहिए। नाग देवता भगवान शिव के गले की शोभा बढ़ाते हैं और नाग पंचमी के दिन पूजा अर्चना करने से धन संपदा और खुशियों में वृद्धि होती है। मान्यता है कि कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ साथ भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
नाग पंचमी की पूजा विधि
स्नान और शुद्धिकरण: नाग पंचमी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल और घर को स्वच्छ और पवित्र करें।
पूजा स्थल को ऐसे करें तैयार: घर के पूजा स्थल को अच्छे से सजाएं। वहां पर नाग देवता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें या फिर आप चांदी से बना नाग नागिन का जोड़ा भी रख सकते हैं।
पूजा सामग्री: पूजा के लिए दूध, चावल, चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक और नैवेद्य (मिठाई) की व्यवस्था पहले ही कर लें।
नाग देवता का अभिषेक: नाग देवता की मूर्ति या फिर नाग-नागिन के जोड़े को दूध, पानी और गंगा जल से स्नान करवाएं।
पुष्पांजलि: नाग देवता की मूर्ति या तस्वीर पर चंदन का लेप करें और पुष्प उन्हें अर्पित करें।
धूप-दीप: इसके बाद धूप और दीपक जलाकर आपको नाग देवता की आरती करनी चाहिए। आरती के दौरान "ॐ नमः शिवाय" और "ॐ नागेंद्राय नमः" मंत्र का जाप करें।
नैवेद्य: नाग देवता को नैवेद्य (मिठाई) अर्पित करें। विशेष रूप से दूध और लड्डू का भोग इस दिन आपको नाग देवता को लगाना चाहिए।
मंत्र जप: नाग पंचमी के दिन "ॐ कुरुकुल्ये हुं फट स्वाहा" मंत्र का जप करना शुभ माना जाता है। इस मंत्र का कम से कम आपको 108 बार जाप करना चाहिए।
नाग पंचमी की कथा पढ़ें: नाग पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें और परिवार के अन्य सदस्यों को भी नाग देवता की कथा आपको सुनानी चाहिए।
इस विधि से अगर आप नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करते हैं तो कई शुभ परिणाम आपको जीवन में प्राप्त हो सकते हैं।
नाग पंचमी की पूजा के लाभ
पैसों से जुड़ी परेशानियां होती हैं दूर: नाग देवता की पूजा से पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर होने लगती हैं। आपका धन संचित होने लगता है और आप जीवन में प्रगति करते हैं।
घर में आती है सुख-शांति: नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने से काल सर्प दोष दूर होता है और साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। नाग देवता की पूजा से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं।
वास्तु दोष होता है दूर: नाग देवता की पूजा करने से घर में सकारात्मकता आती है और वास्तु दोष दूर होती है।
नाग पूजन से स्वास्थ्य और सुरक्षा होती है प्राप्त: ऐसा माना जाता है कि विधि-विधान पूर्वक नाग देवता की पूजा करने से सर्पदंश और अन्य जहरीले जीवों से सुरक्षा मिलती है। साथ ही आपके स्वास्थ्य में भी अच्छे बदलाव आते हैं।
धन-संपत्ति में वृद्धि: नाग पंचमी पर विधिपूर्वक जो भी लोग नाग देवता की पूजा करते हैं उनके जीवन में धन संपत्ति की कमी नहीं रहती।
नाग पंचमी का पावन पर्व हमें नाग देवता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। अगर इस दिन आप सही विधि से नाग देवता की पूजा करें तो आपको जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
नाग पंचमी की कहानी
नाग पंचमी की कथा अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र हुआ करते थे। सातों का विवाह हो गया था। उन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी। लेकिन उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने के लिए कहा। जिनके बाद सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने चल दीं। तभी अचानक से वहां पर एक एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी।
लेकिन छोटी बहू ने उसे रोक दिया कहा मत मारो इसे, यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उस सांप को जाने दिया। तब सर्प एक ओर जाकर बैठ गया। तब छोटी बहू ने सांप से कहां कि हम अभी लौट कर आते हैं तुम यहां से मत जाना। इतना कहकर छोटी बहू सभी के साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां जाकर कामकाज में फंस गई। जिसके चलते उसने जो सर्प से वादा किया था उसे भूल गई।
छोटी बहू को दूसरे दिन ये बात याद आई कि उसने तो सांप को रुकने के लिए कहा था। वो तुरंत ही जंगल की तरफ चल दी उसने देखा कि सर्प उस स्थान पर अभी भी बैठा हुआ है वो बोली: सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा: तूने मुझे भैया कहा है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने पर तुझे डस लेता। वह बोली: भैया मुझसे बड़ी भूल हो गई, उसके लिए मैं दिल से क्षमा मांगती हूं।
तब सांप ने कहां कि अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भईया। तुझे जो मांगना हो, मांग लो। वह बोली मेरे पास एक भाई की ही कमी थी जो तुमने पूरी कर दी।ऐसा कहकर वो घर को लौट गई। कुछ दिन बीत जाने पर वह सर्प मनुष्य का रूप लेकर उसके घर पहुंचा और बोला: कि मेरी बहिन को भेज दो। सब बहुए उस लड़के को देखकर हैरान हो गई क्योंकि वो जानती थीं कि छोटी बहू का कोई भाई नहीं है।
तब वो बोला मैं दूर के रिश्ते का भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके ऐसा कहने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। लड़के ने मार्ग में बताया कि: मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं। जहां भी तुम्हें चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। इस प्रकार छोटी बहू उसके घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह हैरान रह गई।
एक दिन सर्प की माता ने छोटी बहू से कहा कि मैं कुछ काम के लिए बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे ठंडा दूध वाली बात ध्यान नहीं रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें सांप का मुंह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हो गई। लेकिन सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सांप ने कहा कि अब बहिन को उसके घर भेज देना चाहिए। तब सांप और उसके पिता ने बहिन को बहुत सारा सोना-चांदी, जवाहरात, वस्त्र आदि देकर उसे विदा किया।
छोटी बहू के पास इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने जलन वश कहा कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए था। सर्प ने जब यह सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा कि इन चीजों को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सांप ने झाड़ू भी सोने की ला दी।
सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों से जड़ा एक बेहद अद्भुत हार दिया था। उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और उसने राजा से कहा कि सेठ की छोटी बहू के पास एक हार है जो मुझे चाहिए। राजा ने मंत्री से कहा कि वो हार लेकर शीघ्र ही उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि आपकी छोटी बहू के पास जो हार है उसे महारानीजी पहनेंगी, इसलिए वो लेकर मुझे दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार ले लिया।
छोटी बहू को बेह दुख हुआ क्यों उसको ये हार उसके भाई सर्प ने दिया था। बहू ने अपने भाई को याद किया और उसने प्रार्थना की भैया! रानी ने मेरा हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वो सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वह हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने अपनी बहन की प्रार्थना सुन ली और ठीक वैसा ही किया। रानी ने जैसे ही वो हार पहना, वैसे ही वह सर्प का बन गया। यह देखकर रानी डर के मारे चीखने लगी।
यह देख कर राजा ने छोटी बहू को तुरंत बुलवाया। राजा ने छोटी बहू से पूछा तुने इस हार में क्या जादू किया है अब मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली: राजन! यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का बन जाता है और कोई दूसरा पहने तो उसके गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने सर्प बना हार उसे देकर कहा: अभी इसे तुरंत पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं पुरस्कार में दीं। छोटी बहू को मिले धन को देखकर बड़ी बहू को बहुत ईर्षा हुई और उसने उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। उसे बुलाकर पूछो कि धन कहां से आया है। तब पति ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह अपने भाई सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय उसका भाई प्रकट हो गया और कहने लगा कि: यदि कोई मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे तुरंत ही खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी पत्नी के भाई सर्प का बड़ा सत्कार किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करने लगीं।