Mahakumbh 2025: कब है शाही स्नान? जानें पौष पूर्णिमा की तिथि और महाकुंभ का आध्यात्मिक महत्व
महाकुंभ हिंदू धर्म का सबसे पवित्र मेला है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है। इसका आयोजन भारत के चार स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में किया जाता है।कुंभ मेला 2024 में 13 जनवरी से प्रारंभ हो रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और तीर्थयात्री गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं।

महाकुंभ मेला 2024: कब से शुरू हो रहा है?
कुंभ मेला 2024 में 13 जनवरी से प्रारंभ हो रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, और तीर्थयात्री गंगा, यमुना, और अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं। पौष पूर्णिमा, जो कुंभ मेले का पहला प्रमुख स्नान पर्व है, 13 जनवरी 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन संगम में स्नान करना पवित्र और शुभ माना जाता है। पौष पूर्णिमा पर संगम में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जानें सभी शाही स्नान की तिथियां
पहला शाही स्नान 13 जनवरी 2025 को होगा।
दूसरा शाही स्नान 14 जनवरी 2025 को मकर संक्रांति के अवसर पर होगा।
महाकुंभ का तीसरा शाही स्नान 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के दिन होगा।
महाकुंभ का चौथा शाही स्नान 2 फरवरी 2025 को बसंत पंचमी के दिन होगा।
महाकुंभ का पांचवां शाही स्नान 12 फरवरी 2025 को माघी पूर्णिमा के दिन होगा।
महाकुंभ का आखरी शाही स्नान 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन होगा।
महाकुंभ का महत्व (Significance of Mahakumbh)
महाकुंभ हिंदू धर्म का सबसे पवित्र मेला है, जो 12 वर्षों में एक बार आयोजित होता है। इसका आयोजन भारत के चार स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में किया जाता है।
महाकुंभ का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का अवसर है, बल्कि यह एकता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और आध्यात्मिक ऊर्जा का भी प्रतीक है।
कुंभ मेला, जिसे पुरुषों और महिलाओं दोनों के धार्मिक समागम के रूप में भी जाना जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है। इस त्यौहार के दौरान, लाखों लोग पवित्र स्नान करने के लिए इकट्ठा होते हैं, खास तौर पर कुछ शुभ दिनों पर, उस नदी के पवित्र जल में जिसके किनारे यह मेला लगता है। पवित्र स्नान करने के अलावा, लोग हिमालय के साथ-साथ भारत के अन्य हिस्सों से मेले में आने वाले साधुओं के दर्शन करने के लिए भी इकट्ठा होते हैं।
कुंभ मेला बारी-बारी से चार अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है और लगभग एक महीने तक चलता है। इस अनोखे मेले के आयोजन का समय और स्थान, अन्य सौर त्योहारों के विपरीत, न केवल राशि विभाजन में सूर्य की स्थिति पर बल्कि बृहस्पति ग्रह की स्थिति पर भी तय किया जाता है, जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है।
महाकुंभ के स्नान का महत्व:
- पवित्रता: संगम में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: कुंभ स्नान आत्मा की शुद्धि का मार्ग है और इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना गया है।
- धार्मिक ऊर्जा: यह स्थान और समय अध्यात्म और धर्म की ऊर्जा से भरपूर होता है।
क्यों मनाया जाता है महाकुंभ? (Why is Mahakumbh Celebrated?)
महाकुंभ की उत्पत्ति की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत कलश के लिए समुद्र मंथन किया, तो भगवान विष्णु ने अमृत को सुरक्षित रखने के लिए गरुड़ को सौंपा। गरुड़ ने अमृत को चार स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन, और नासिक में रखा।
इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन स्थानों पर गिर गईं। यही कारण है कि इन स्थानों को पवित्र माना जाता है और यहां कुंभ मेला आयोजित होता है।
क्षीर सागर का मंथन एक कठिन कार्य था। दानवों (असुरों) की सहायता के बिना इसे पूरा करना संभव नहीं था। इसलिए देवताओं ने इस कार्य को पूरा करने के लिए दानवों के साथ एक समझौता किया और यह तय किया गया कि क्षीर सागर से निकलने वाले सभी लाभ समान रूप से बाँटे जाएँगे, जिसमें अमरता का अमृत भी शामिल है। क्षीर सागर के मंथन के दौरान जब अमृत का कलश (कुंभ) निकला, तो देवताओं और दानवों के बीच इसे एक दूसरे के साथ बाँटे बिना पूरी तरह से पाने के लिए लड़ाई छिड़ गई।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार देवताओं और दानवों के बीच लड़ाई बारह वर्षों तक जारी रही। लड़ाई के दौरान अमृत के कलश को दानवों से सुरक्षित रखने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया गया। इस दौरान अमृत की कुछ बूँदें बारह अलग-अलग स्थानों पर गिरीं। उन बारह स्थानों में से चार पृथ्वी पर थे और शेष आठ स्वर्ग में थे।
अमृत की बूँदों के गिरने के कारण पृथ्वी पर चार स्थान, प्रयागराज,नासिक, हरिद्वार और उज्जैन पवित्र हो गए। इसलिए कुंभ मेला केवल इन चार स्थानों पर ही आयोजित किया जाता है।
चूँकि सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ने राक्षसों से अमृत कलश की रक्षा करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी, इसलिए कुंभ महापर्व का आयोजन तभी किया जाता है जब ये तीनों ग्रह विशिष्ट राशि में स्थित होकर विशेष योग बनाते हैं।
महाकुंभ का आध्यात्मिक महत्व (Spiritual Importance of Mahakumbh)
- धार्मिक चेतना का जागरण: महाकुंभ आत्मा और शरीर को शुद्ध करने का समय है।
- संतों का सानिध्य: इस मेले में अखाड़ों के साधु-संतों से मिलने और उनके विचार सुनने का अवसर मिलता है।
- विश्व बंधुत्व: यह मेला पूरी दुनिया के लोगों को एक साथ लाता है, जो सांस्कृतिक आदान-प्रदान का प्रतीक है।
महाकुंभ में क्या करें? (What to Do in Mahakumbh)
- संगम स्नान: गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करें।
- दान-पुण्य: गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करें।
- धार्मिक अनुष्ठान: पूजा-पाठ, मंत्र जाप और ध्यान करें।
- अखाड़ों के दर्शन: साधु-संतों के साथ संवाद करें और उनकी विचारधारा को समझें।
महाकुंभ में क्या न करें? (What Not to Do in Mahakumbh)
- अव्यवस्था फैलाना: साफ-सफाई का ध्यान रखें और पवित्र स्थानों को गंदा न करें।
- मांसाहार और नशा: मांसाहार और शराब का सेवन न करें।
- धार्मिक परंपराओं का उल्लंघन: कुंभ मेला धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है, इसलिए अनुशासन बनाए रखें।
महाकुंभ 2024 धर्म, आस्था, और अध्यात्म का सबसे बड़ा पर्व है। यह न केवल आत्मशुद्धि का मार्ग है, बल्कि जीवन के हर पहलू में सकारात्मकता और शांति का अनुभव कराने का अवसर भी है। संगम में स्नान, साधु-संतों का सानिध्य, और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन इस मेले की विशेषता है।