Kartik Purnima: बहुत ही बड़ा आध्यात्मिक महत्व का है यह त्योहार, जानें इसके बारे में सबकुछ
हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व रखता है। इसे वर्ष का सबसे पवित्र और पुण्यदायी दिन माना जाता है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व गंगा स्नान, दीपदान और धार्मिक अनुष्ठानों का पर्व है। इस दिन की महिमा और पवित्रता के कारण लाखों श्रद्धालु देशभर के पवित्र नदियों में स्नान करने और मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते हैं।

हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का दिन विशेष महत्व रखता है। इसे वर्ष का सबसे पवित्र और पुण्यदायी दिन माना जाता है। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व गंगा स्नान, दीपदान और धार्मिक अनुष्ठानों का पर्व है। इस दिन की महिमा और पवित्रता के कारण लाखों श्रद्धालु देशभर के पवित्र नदियों में स्नान करने और मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के लिए इकट्ठा होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा को भगवान विष्णु का जन्म हुआ था, और यही कारण है कि इस दिन को "भगवान का दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इसे "देव दीपावली" के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवताओं ने दीप जलाकर भगवान विष्णु के इस धरती पर आगमन का स्वागत किया था। इस दिन को त्रिपुरासुर का वध करने के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है।
कहते हैं कि त्रिपुरासुर नामक असुर ने तीनों लोकों में उत्पात मचा रखा था। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का संहार करके तीनों लोकों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसके बाद, देवताओं ने हर्षोल्लास के साथ इस दिन को मनाया, और तभी से इसे देव दीपावली के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन का महत्व इतना अधिक है कि जो भी इस दिन गंगा स्नान और दान करता है, उसे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा का दिन भगवान शिव, विष्णु, और तुलसी के पूजन के लिए समर्पित होता है। इस दिन गंगा, यमुना, सरस्वती और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं। इस दिन के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए लाखों श्रद्धालु काशी, प्रयागराज, हरिद्वार और अन्य पवित्र स्थानों पर एकत्रित होते हैं।
यह त्योहार केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि जैन और सिख समुदाय के लिए भी विशेष महत्व रखता है। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर के निर्वाण का पर्व माना जाता है, जबकि सिख धर्म में इसे गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी का जन्म इसी दिन हुआ था, और इस कारण यह दिन सिख समुदाय के लिए अत्यंत पावन माना जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव और परंपराएं
कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और दीपदान की विशेष परंपरा होती है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले स्नान करके भगवान विष्णु और शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन किया गया कोई भी दान व्यक्ति को पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
देव दीपावली के रूप में भी इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन गंगा तट और मंदिरों में दीप जलाए जाते हैं, जिससे अद्भुत और दिव्य नजारा उत्पन्न होता है। लाखों दीपों की रोशनी से नहाए हुए गंगा के घाटों का दृश्य ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो। इस दिन काशी के घाटों पर विशेष गंगा आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं और भक्ति भाव से देवताओं की स्तुति करते हैं।
इसके अतिरिक्त, इस दिन गोपाष्टमी का पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें गायों की पूजा की जाती है। हिंदू धर्म में गाय को माता का स्थान प्राप्त है, और इस दिन विशेष रूप से गायों का आशीर्वाद लिया जाता है ताकि व्यक्ति का जीवन सुख-समृद्धि से भर जाए।
कार्तिक पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह दिन हमें आंतरिक शुद्धि और आत्मसाक्षात्कार की प्रेरणा देता है। गंगा स्नान और दीपदान के माध्यम से यह दिन व्यक्ति को उसकी आत्मा की गहराई में उतरने और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को जगाने का अवसर प्रदान करता है। गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से न केवल बाहरी, बल्कि आंतरिक शुद्धि का भी अनुभव होता है।
मान्यता है कि इस दिन ध्यान और साधना करने से व्यक्ति का आत्मिक बल बढ़ता है और उसे भगवान के निकट होने का अनुभव प्राप्त होता है। देव दीपावली पर जलाए गए दीपक, व्यक्ति के जीवन में उजाला लाने का प्रतीक होते हैं, जो हमें यह संदेश देते हैं कि ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास से हमारे जीवन के अंधकार दूर हो सकते हैं। कार्तिक पूर्णिमा पर की गई पूजा-अर्चना से मनुष्य की आत्मा शुद्ध होती है और उसे आंतरिक शांति की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा का पर्व भारतीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक है। यह दिन भगवान शिव, विष्णु, और गुरु नानक देव के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर है। इस दिन गंगा स्नान, दान और दीपदान की परंपरा हमें अपने जीवन में आंतरिक और बाहरी शुद्धि के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करती है।
इस पर्व की दिव्यता और इसके आध्यात्मिक महत्व का अनुभव करने के लिए हर वर्ष लाखों श्रद्धालु भारत के विभिन्न पवित्र नदियों के किनारे एकत्रित होते हैं। यह पर्व हमें जीवन के हर क्षेत्र में पवित्रता, शुद्धता, और ईश्वर के प्रति आस्था को बनाए रखने का संदेश देता है।
कार्तिक पूर्णिमा का यह पर्व वास्तव में हमारी भारतीय संस्कृति का अमूल्य हिस्सा है, जो हर व्यक्ति के हृदय में भक्ति, समर्पण, और श्रद्धा की भावना को जागृत करता है।