कब मनाई जाएगी हनुमान जयंती? क्या है इसका महत्व? जानिए हनुमान जी से जुड़ी अनसुनी कहानियाँ
हनुमान जयंती हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पावन और शक्तिशाली पर्व है, जो भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और भक्ति के साथ हनुमान भक्त इसे मनाते हैं।

हनुमान जयंती हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पावन और शक्तिशाली पर्व है, जो भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा और भक्ति के साथ हनुमान भक्त इसे मनाते हैं। हनुमान जी को “अंजनी पुत्र,” “बजरंगबली,” “मारुति नंदन,” और “राम भक्त” जैसे कई नामों से जाना जाता है। वे शक्ति, भक्ति, बुद्धि और निर्भयता के प्रतीक हैं।
इस लेख में हम जानेंगे कि हनुमान जयंती 2025 में कब मनाई जाएगी, इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व, और हनुमान जी से जुड़ी कुछ अनसुनी और अद्भुत कहानियाँ।
हनुमान जयंती 2025 में कब है? (Hanuman Jayanti 2025 Date)
2025 में हनुमान जयंती 12 अप्रैल, शनिवार को मनाई जाएगी। यह दिन चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है, जो कि भगवान हनुमान के जन्म का पवित्र दिन माना जाता है।
हनुमान जयंती 2025 का शुभ मुहूर्त:
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पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 11 अप्रैल 2025, दोपहर 2:53 बजे
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पूर्णिमा तिथि समाप्त: 12 अप्रैल 2025, दोपहर 1:16 बजे
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हनुमान जयंती पूजा का श्रेष्ठ समय: 12 अप्रैल को सुबह 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक
हनुमान जयंती का महत्व (Significance of Hanuman Jayanti in Hindi)
हनुमान जयंती का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन को भगवान हनुमान के पृथ्वी पर अवतरण के रूप में मनाया जाता है। वे भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार माने जाते हैं और राम भक्तों के लिए अटूट आस्था का केंद्र हैं। उनका जीवन बल, बुद्धि और भक्ति का उदाहरण है।
मुख्य कारण जिनसे यह पर्व महत्वपूर्ण है:
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राम भक्त का प्रतीक:
हनुमान जी को श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति के लिए जाना जाता है। उन्होंने जीवनभर प्रभु श्रीराम की सेवा और सहयोग किया। -
कष्टों को दूर करने वाले देवता:
भक्तों का विश्वास है कि हनुमान जी की पूजा करने से भय, शनि दोष, रोग और अन्य संकटों से मुक्ति मिलती है। -
शक्ति और साहस का प्रतीक:
हनुमान जी का चरित्र यह सिखाता है कि मनुष्य में असीम शक्ति छिपी होती है, जिसे आत्मविश्वास और भक्ति के माध्यम से जागृत किया जा सकता है। -
ब्रह्मचारी जीवन के आदर्श:
वे आज भी पृथ्वी पर अमर बताए जाते हैं और ब्रह्मचर्य व्रत के आदर्श हैं।
हनुमान जयंती पर पूजा विधि (Puja Vidhi for Hanuman Jayanti)
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प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
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हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
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सिंदूर, चमेली का तेल, फूल, फल और नारियल चढ़ाएं।
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हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करें।
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“ॐ हनुमते नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
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प्रसाद में गुड़ और चने का भोग लगाएं।
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भक्तों में प्रसाद वितरित करें और जरूरतमंदों को भोजन कराएं।
1. हनुमान जी और शनि देव की कथा (Hanuman and Shani Dev Story in Detail)
यह कथा दर्शाती है कि कैसे भगवान हनुमान ने न केवल अपने बल और बुद्धि से शनि देव को रावण के बंदीगृह से मुक्त किया, बल्कि दुनिया को शनि दोष से बचने का उपाय भी दिया।
लंका पर जब रावण का शासन था, तब उसने कई देवताओं को बंदी बना लिया था, जिनमें शनि देव भी शामिल थे। शनि देव को एक अंधेरी कालकोठरी में उल्टा लटकाकर रखा गया था। इससे उनके क्रोध की अग्नि और अधिक तीव्र होती जा रही थी।
जब भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की और हनुमान जी को लंका दहन के लिए भेजा, तब उन्होंने रावण की पूरी लंका को जलाकर राख कर दिया। इसी दौरान उन्हें शनि देव की कराहने की आवाज सुनाई दी।
हनुमान जी ने तुरंत शनि देव को कालकोठरी से बाहर निकाला और उनका उद्धार किया। शनि देव, जो अत्यंत कष्ट में थे, हनुमान जी की कृपा से बाहर आकर बहुत प्रसन्न हुए।
शनि देव ने हनुमान जी से कहा, “हे पवनपुत्र! तुमने मेरी पीड़ा का अंत किया है, मैं तुम्हारा आभारी हूँ। मैं तुम्हें एक वरदान देता हूँ — जो भी भक्त मंगलवार और शनिवार को तुम्हारी पूजा करेगा, हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उसे कभी शनि दोष, साढ़ेसाती या ढैय्या से कष्ट नहीं होगा।”
इस घटना के बाद से ही यह विश्वास बन गया कि हनुमान जी की पूजा करने से शनि दोष शांत हो जाता है और भक्त को शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।
2. रामायण की लेखनी में हनुमान जी का योगदान (Hanuman's Version of Ramayana)
यह कथा अद्भुत है और हमें यह सिखाती है कि सेवा और त्याग, प्रसिद्धि और पुरस्कार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण होते हैं।
वाल्मीकि मुनि को जब नारद जी ने रामकथा सुनाई, तो उन्होंने उसे विस्तार से लिखने का संकल्प लिया और रामायण की रचना की। वे अपनी रचना को सर्वश्रेष्ठ मानते थे। लेकिन नारद मुनि ने उन्हें बताया कि हनुमान जी ने भी रामकथा लिखी है।
वाल्मीकि ऋषि ने जब हनुमान जी से भेंट की और उनसे उनकी रामकथा पढ़ने की इच्छा जताई, तो हनुमान जी उन्हें एक गुफा में ले गए जहाँ उन्होंने पत्थरों पर अपने नाखूनों से रामकथा उकेरी थी।
हनुमान जी की कथा इतनी भावनात्मक और निष्कलंक थी कि उसे पढ़कर वाल्मीकि मुनि की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने कहा, “हे पवनपुत्र, यह तो मेरी कथा से कहीं अधिक दिव्य है। मेरी कथा में काव्य सौंदर्य है, पर आपकी कथा में सेवा, त्याग और भक्ति की आत्मा है।”
हनुमान जी ने जब देखा कि उनकी कथा से वाल्मीकि मुनि को दुःख हुआ है, तो उन्होंने वह सारी कथा पत्थरों सहित नष्ट कर दी और कहा — “मेरे लिए सेवा ही सबसे बड़ा पुरस्कार है, प्रसिद्धि नहीं।”
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चा सेवक कभी भी अपने काम का घमंड नहीं करता। त्याग और विनम्रता ही उसे महान बनाते हैं।
3. माता सीता द्वारा सिंदूर लगाने का कारण (Why Sita Applied Sindoor and Hanuman's Devotion)
यह अत्यंत प्रिय और भक्तिपूर्ण कथा है, जो हनुमान जी की अद्वितीय भक्ति और समर्पण को दर्शाती है।
एक दिन हनुमान जी ने देखा कि माता सीता अपनी मांग में बड़ी श्रद्धा और प्रेम से सिंदूर लगा रही हैं। हनुमान जी को यह देखकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने विनम्रतापूर्वक पूछा — “माते! आप यह सिंदूर क्यों लगाती हैं?”
माता सीता ने मुस्कराकर उत्तर दिया — “मैं यह सिंदूर प्रभु श्रीराम की दीर्घायु और कल्याण के लिए लगाती हूँ। यह मेरे स्नेह और समर्पण का प्रतीक है।”
हनुमान जी ने यह सुना और सोचा — “यदि थोड़ा सा सिंदूर लगाने से प्रभु को दीर्घायु प्राप्त होती है, तो यदि मैं अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लूँ, तो प्रभु राम को अनंत जीवन और सुख मिलेगा।”
हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया और दरबार में पहुँच गए। जब लोगों ने यह दृश्य देखा तो सभी चकित रह गए। श्रीराम ने हँसते हुए पूछा — “हे मारुति! यह क्या कर रहे हो?”
हनुमान जी ने अत्यंत भक्ति भाव से उत्तर दिया — “प्रभु! माता सीता ने बताया कि सिंदूर आपके लिए शुभ है, तो मैंने सोचा जितना अधिक सिंदूर, उतना अधिक कल्याण!”
श्रीराम हनुमान जी की इस मासूम भक्ति और निश्छल प्रेम को देखकर अत्यंत भावुक हो गए। उन्होंने कहा — “हे हनुमान! तुम्हारे समान कोई भक्त नहीं है। तुम्हारी भक्ति मुझे सबसे प्रिय है।”
तभी से, हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई। भक्तगण आज भी उन्हें सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करते हैं।
हनुमान जी के 5 प्रसिद्ध रूप (Panchmukhi Hanuman)
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पूर्वमुख (वानर रूप) – संकटों से मुक्ति दिलाने वाला
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दक्षिणमुख (नरसिंह रूप) – भय से रक्षा
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पश्चिममुख (गरुड़ रूप) – काले जादू से रक्षा
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उत्तरमुख (वराह रूप) – स्वास्थ्य की रक्षा
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ऊर्ध्वमुख (हयग्रीव रूप) – ज्ञान की प्राप्ति
हनुमान जयंती पर क्या करें और क्या न करें
करें:
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ब्रह्मचर्य का पालन करें
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हनुमान चालीसा का पाठ करें
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जरूरतमंदों की सेवा करें
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हनुमान मंदिर में दर्शन करें
न करें:
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मांस-मदिरा का सेवन न करें
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किसी का अपमान या झूठ न बोलें
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क्रोध और अहंकार से बचें
हनुमान जयंती न केवल भगवान हनुमान के जन्म का उत्सव है, बल्कि यह एक प्रेरणा है साहस, समर्पण, भक्ति और सेवा की। उनके जीवन से हम सिख सकते हैं कि भक्ति और कर्तव्य के मार्ग पर चलकर कोई भी संकट पार किया जा सकता है। इस पावन दिन पर प्रभु श्रीराम और उनके अनन्य भक्त हनुमान की कृपा सभी पर बनी रहे — यही शुभकामना है।
“जय बजरंगबली! जय श्रीराम!” ????