क्या आप जानते हैं एकादशी व्रत रखने का कारण?
क्या आप जानते हैं एकादशी व्रत रखने का कारण? इस लेख के माध्यम से जाने क्या है एकादशी व्रत रखने के लाभ।
एकादशी व्रत क्यों?
डॉक्टर अक्सर मरीजों को हर दो सप्ताह में एक दिन उपवास रखने के लिए कहते हैं। इसका वैज्ञानिक औचित्य है। "मंडल" के रूप में जानी जाने वाली एक अवधारणा हमारे शरीर के नियमित चक्रों से जुड़ी है। मंडल का अर्थ है कि शरीर प्रत्येक 40 से 48 दिनों में एक विशिष्ट चक्र से गुजरता है। प्रत्येक चक्र में तीन दिन (प्रत्येक 11 से 14 दिनों में एक दिन) होते हैं जिसके दौरान शरीर को भोजन की आवश्यकता नहीं होती है। आम तौर पर भूख कम लगती है। उस दिन बिना कुछ खाये भी रहा जा सकता है । मनुष्यों के साथ कुछ जानवर भी उपवास करते हैं। विचाराधीन दिन को शारीरिक शुद्धि का दिन भी कहा जाता है।
प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों की यही मत है और शास्त्रों में भी एकादशी के दिन व्रत करने की आज्ञा है। हिंदी महीनों में हर 14 से 15 दिनों में एक बार एकादशी आती है।
हमारे संतों ने अपने सत्संगों में एकादशी के महत्व को बड़ी सुन्दरता से बताया है। अनेक संतों के अनुसार एकादशी व्रत की बड़ी महिमा है। एकादशी के व्रत में पांच कर्मेन्द्रियां, पांच ज्ञानेंद्रियां और एकादश मन सभी वश में होते हैं। यह न केवल शारीरिक बीमारियों का इलाज करता है, बल्कि मन में दोषों को भी दूर करता है, बुद्धि को तेज करता है, भगवान की भक्ति को प्रमाणित करता है, योग में सफलता को बढ़ावा देता है और वांछित परिणाम देता है।
वात-पित्त-कफजनित दोष अथवा समय-असमय खाये हुए अन्न आदि के जो दोष 14 दिन में इकट्ठे होते हैं, 15वें दिन एकादशी का व्रत रखा तो वे दोष निवृत्त होते हैं । जो विपरीत रस या कच्चा रस नाड़ियों में पड़ा है, जो बुढ़ापे में मुसीबत देगा, व्रत उसको नष्ट कर देता है । इससे शरीर जल्दी रोगी नहीं होगा । एकादशी को चावल खाने से स्वास्थ्य-हानि, पापराशि की वृद्धि कही गयी है ।
इस दिन हो सके तो निर्जल रहें, नहीं तो थोड़ा जल पियें । ठंडा जल पीने से मंदाग्नि होती है, गुनगुना जल पियें, जिससे जठर की भूख बनी रहे और नाड़ियों में जो वात-पित्त-कफ के दोष जमा हैं, उन्हें खींचकर जठर उनको पचा दे, आरोग्य की रक्षा हो । जल से गुजारा न हो तो थोड़े-से फल खा लें और थोड़े-से फल से भी गुजारा न हो तो मोरधन आदि की खिचड़ी खा ली थोड़ी ।
एकादशी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखें :
(1) बार-बार पानी नहीं पियें । (2) वाणी या शरीर से हिंसा न करें । (3) अपवित्रता का त्याग करें । (4) असत्य भाषण न करें । (5) पान न चबायें । (6) दिन को नींद न करें । (7) संसारी व्यवहार – मैथुन भूलकर भी न करें । (8) जुआ और जुआरियों की बातों में न आयें । (9) रात को शयन कम करें, थोड़ा जागरण करें (रात्रि 12 बजे तक) । (10) पतित, हलकी वार्ता करें-सुनें नहीं । (11) दातुन न चबायें, मंजन कर लें ।
सुबह संकल्प करें
एकादशी के दिन सुबह संकल्प करें कि ‘आज का दिन सारे पापों को जलाकर भस्म करनेवाला, आरोग्य के कण बढ़ानेवाला, रोगों के परमाणुओं को नष्ट करनेवाला, नाड़ियों व मन की शुद्धि करनेवाला, बुद्धि में भगवद्भक्ति भरनेवाला तथा ओज, बल और प्रसन्नता देनेवाला हो । देवी ! तेरे नाम का मैं व्रत करता हूँ ।’ फिर नहा-धोकर भगवद् पूजा, ध्यान, सुमिरन, जप करें ।’