Akhadas in India: महाकुंभ में कितने अखाड़े ले रहे हैं भाग, जानिए इनका इतिहास

महाकुंभ 2025 का आयोजन भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें देशभर से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत एकत्रित होते हैं। इस महापर्व में अखाड़ों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आइए, जानते हैं महाकुंभ में भाग लेने वाले अखाड़ों की संख्या, उनका इतिहास, गठन, और महाकुंभ में उनकी भूमिका।

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Akhadas in India: महाकुंभ में कितने अखाड़े ले रहे हैं भाग, जानिए इनका इतिहास

महाकुंभ 2025 में अखाड़ों की भागीदारी और उनका इतिहास

महाकुंभ 2025 का आयोजन भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें देशभर से करोड़ों श्रद्धालु और साधु-संत एकत्रित होते हैं। इस महापर्व में अखाड़ों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। आइए, जानते हैं महाकुंभ में भाग लेने वाले अखाड़ों की संख्या, उनका इतिहास, गठन, और महाकुंभ में उनकी भूमिका।

अखाड़ों का इतिहास और गठन

'अखाड़ा' शब्द का शाब्दिक अर्थ है "कुश्ती का स्थान"। हालांकि, धार्मिक संदर्भ में यह साधु-संतों के उन संगठनों को दर्शाता है जो धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हैं। माना जाता है कि 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव को रोकने और सनातन धर्म की रक्षा के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। उन्होंने साधुओं को शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने के लिए अखाड़ों का गठन किया, ताकि वे धर्म की रक्षा कर सकें। 

महाकुंभ 2025 में भाग लेने वाले प्रमुख अखाड़े

महाकुंभ 2025 में कुल 13 प्रमुख अखाड़े भाग ले रहे हैं, जिन्हें तीन मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

  1. शैव अखाड़े (साधु संन्यासी संप्रदाय):

    • श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी: मुख्यालय - दारागंज, प्रयागराज।
    • श्री पंच अटल अखाड़ा: मुख्यालय - चौक हनुमान, वाराणसी।
    • श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी: मुख्यालय - दारागंज, प्रयागराज।
    • श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती: मुख्यालय - त्र्यंबकेश्वर, नासिक।
    • श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा: मुख्यालय - बाबा हनुमान घाट, वाराणसी।
    • श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा: मुख्यालय - दशाश्वमेध घाट, वाराणसी।
    • श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा: मुख्यालय - गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़।
  2. वैष्णव अखाड़े (बैरागी संप्रदाय):

    • श्री दिगंबर अनी अखाड़ा: मुख्यालय - शामलाजी खाकचौक मंदिर, साबरकांठा, गुजरात।
    • श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा: मुख्यालय - हनुमान गढ़ी, अयोध्या।
    • श्री निर्मोही अनी अखाड़ा: मुख्यालय - दिगंबर अखाड़ा, नासिक।
  3. उदासीन अखाड़े:

    • श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा: मुख्यालय - हरिद्वार।
    • श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा: मुख्यालय - हरिद्वार।

इसके अतिरिक्त, किन्नर अखाड़ा भी महाकुंभ में भाग लेता है, जो किन्नर समुदाय के अधिकारों और उनकी धार्मिक पहचान के लिए कार्यरत है।

महाकुंभ 2025 में विभिन्न अखाड़ों की भागीदारी भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। आइए, प्रत्येक अखाड़े के इतिहास, गठन, और उनकी विशेषताओं पर विस्तृत रूप से चर्चा करते हैं।

1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी

  • मुख्यालय: दारागंज, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
  • इतिहास: महानिर्वाणी अखाड़ा शैव संप्रदाय का प्रमुख अखाड़ा है, जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। यह अखाड़ा सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

2. श्री पंच अटल अखाड़ा

  • मुख्यालय: चौक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  • विशेषता: अटल अखाड़ा शैव परंपरा का पालन करता है और अपने अनुयायियों को शारीरिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। महाकुंभ में इसकी शोभायात्रा विशेष आकर्षण का केंद्र होती है।

3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी

  • मुख्यालय: दारागंज, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)
  • इतिहास: निरंजनी अखाड़ा की स्थापना 904 ईस्वी में हुई थी। यह अखाड़ा शैव संप्रदाय का हिस्सा है और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित है।

4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती

  • मुख्यालय: त्र्यंबकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
  • विशेषता: आनंद अखाड़ा शैव परंपरा का पालन करता है और साधुओं के शारीरिक और आध्यात्मिक विकास पर जोर देता है।

5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा

  • मुख्यालय: बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  • इतिहास: जूना अखाड़ा सबसे बड़ा और प्राचीन अखाड़ा माना जाता है। यह शैव संप्रदाय का हिस्सा है और नागा साधुओं के लिए प्रसिद्ध है।

6. श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा

  • मुख्यालय: दशाश्वमेध घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  • विशेषता: आह्वान अखाड़ा शैव परंपरा का पालन करता है और धर्म की रक्षा के लिए समर्पित है।

7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा

  • मुख्यालय: गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)
  • विशेषता: पंच अग्नि अखाड़ा शैव संप्रदाय का हिस्सा है और कठोर तपस्या और साधना के लिए जाना जाता है।

8. श्री दिगंबर अनी अखाड़ा

  • मुख्यालय: शामलाजी खाकचौक मंदिर, साबरकांठा (गुजरात)
  • विशेषता: यह वैष्णव संप्रदाय का अखाड़ा है, जो भगवान विष्णु की उपासना करता है।

9. श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा

  • मुख्यालय: हनुमान गढ़ी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
  • विशेषता: निर्वाणी अनी अखाड़ा वैष्णव परंपरा का पालन करता है और राम भक्तों के लिए प्रसिद्ध है।

10. श्री निर्मोही अनी अखाड़ा

  • मुख्यालय: दिगंबर अखाड़ा, नासिक (महाराष्ट्र)
  • विशेषता: यह अखाड़ा वैष्णव संप्रदाय का हिस्सा है और भगवान राम की उपासना करता है।

11. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा

  • मुख्यालय: हरिद्वार (उत्तराखंड)
  • विशेषता: उदासीन संप्रदाय का यह अखाड़ा गुरु नानक देव जी के शिष्य श्रीचंद जी द्वारा स्थापित किया गया था।

12. श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा

  • मुख्यालय: हरिद्वार (उत्तराखंड)
  • विशेषता: यह अखाड़ा उदासीन परंपरा का पालन करता है और साधुओं के शारीरिक और आध्यात्मिक विकास पर जोर देता है।

13. किन्नर अखाड़ा

  • मुख्यालय: वर्तमान में कोई स्थायी मुख्यालय नहीं है।
  • विशेषता: किन्नर अखाड़ा 2015 में स्थापित हुआ और किन्नर समुदाय के अधिकारों और उनकी धार्मिक पहचान के लिए कार्यरत है।

इन अखाड़ों की स्थापना का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा, प्रचार-प्रसार, और साधु-संतों के शारीरिक एवं आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करना था। महाकुंभ जैसे आयोजनों में इन अखाड़ों की सहभागिता भारतीय संस्कृति और धर्म की समृद्धि को प्रदर्शित करती है।

अखाड़ों की भूमिका और महाकुंभ में सहभागिता

महाकुंभ में अखाड़ों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। वे धार्मिक अनुष्ठानों, शाही स्नान, और धर्मसभा जैसे आयोजनों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। शाही स्नान के दौरान अखाड़ों के साधु-संत पारंपरिक वेशभूषा, अस्त्र-शस्त्र, और ध्वज के साथ शोभायात्रा निकालते हैं, जो महाकुंभ का मुख्य आकर्षण होता है। यह परंपरा आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित की गई थी, जिसमें साधुओं को शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाया गया, ताकि वे धर्म की रक्षा कर सकें। 

महाकुंभ 2025 में अखाड़ों की भागीदारी भारतीय संस्कृति, धर्म, और परंपराओं की समृद्धि को दर्शाती है। इन अखाड़ों का इतिहास, गठन, और महाकुंभ में उनकी भूमिका हमें हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाती है, जो सदियों से हमारी पहचान का हिस्सा रही है।